Sunday, 24 January 2021

माझ्या कविता 49

ए जिंदगी का सफर 
और कितने इम्तेहान लेगा।
क्या पता मिले खुशी 
या सिर्फ दर्द ही देगा।

यहां कौन समझता किसको
बस अपनी ही पड़ी है।
खुद को ठहरना सही
इस पर दुनिया अड़ी है।

प्यार मोहब्बत तो सिर्फ
दिखावा है जनाब।
मगर झूठे  इश्तिहारों में 
कई शामिल है नवाब।

गुमनाम गलियों में 
ना अपनेपन का एहसास है।
कभी छलकते दर्द के आंसू 
मगर कौन यहां देखता है।

बिखरते रंगो की होली 
अब कहां आती है।
मनाए हर पल खुशी से सब
ऐसी दीवाली कहां होती है।

हर एक बैठा अकेला 
मदमस्त अपने घोसलों में।
शायद मिले कोई ऐसा
जो जान डाल दे हौसलों में।

बस भी कर ए जिंदगी
यह दर्द सहा नहीं जाता।
खुशियों का पैगाम लाए
शायद वक्त कोई आता।

प्यार मोहब्बत बटें सबमें
जब मिले हाथों में हाथ।
कुछ बीते ऐसी रातें
जो गुजरे अपनों के साथ।